घाघ की कहावतें
घाघ भारत के लोक-कवि हैं जिनकी कहावतें आज भी किसानों के बीच खूब लोकप्रिय हैं। आइए पढ़ते हैं उनकी कुछ लोकप्रिय कहावतें-
प्रातकाल खटिया ते उठि कै पियै तुरतै पानी।
कबहूँ घर मा बैद न अइहैं बात घाघ कै जानी।।
रहै निरोगी जो कम खाय।
बिगरै न काम जो गम खाय।।
सावन सुक्ला सप्तमी, जो गरजै अधिरात।
बरसै तो झूरा परै, नाहीं समौ सुकाल।।
शुक्रवार की बादरी, रही सनीचर छाय।
कहैं घाघ सुन घाघनी, बिन बरसे ना जाय।।
जौ पुरवा पुरवाई पावै,
सूखी नदी नाव चलवावै।
जै दिन जेठ बहे पुरवाई,
तै दिन सावन धूरि उड़ाई।
अंडा लै चीटीं चले, गौरैया धूरि नहाय।
छर-छर बरसी बादरा, अन्न से घर भर जाय।।
दिन में गरमी रात में ओस,
कहैं घाघ बरखा सौ कोस।
खाय के पर रहै; मारि के टर रहै।
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