सूर्यकांत त्रिपाठी निराला की कविता-बाँधो न नाव इस ठाँव बंधु
पढ़िए सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला' की कविता : बाँधो न नाव इस ठाँव बंधु!
बाँधो न नाव इस ठाँव, बंधु!!
पूछेगा सारा गाँव, बंधु!!
यह घाट वही जिस पर हँसकर।
वह कभी नहाती थी धँसकर।
आँखें रह जाती थीं फँसकर।
कँपते थे दोनों पाँव बंधु!!
वह हँसी बहुत कुछ कहती थी।
फिर भी अपने में रहती थी।
सबकी सुनती थी, सहती थी।
देती थी सबके दाँव, बंधु!!
बाँधो न नाव इस ठाँव, बंधु!!
पूछेगा सारा गाँव, बंधु!!
सूर्यकांत त्रिपाठी निराला
image courtesy: Google
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