हिंदी भाषा के सम्बन्ध में स्वामी विवेकानंद का एक स्मरणीय प्रसंग
उत्तिष्ठत, जाग्रत, प्राप्य वरान्निबोधयत् !! |
स्वामी विवेकानंद विश्वविख्यात धर्माचार्य और विद्वान थे। उन्हें हिंदी, संस्कृत, अंग्रेजी सहित अनेक भारतीय और विदेशी भाषाओं का ज्ञान था। वास्तव में जिस संत ने अपने संबोधन से अमेरिका वासियों को मंत्रमुग्ध कर दिया हो उसके अंग्रेजी भाषा के ज्ञान के विषय में भला किसे संदेह हो सकता है। किन्तु उन्हें अपनी संस्कृति के साथ-साथ अपनी मातृभाषा हिंदी से भी गहरा प्रेम था। वे अपनी संस्कृति से जुड़ी समस्त वस्तुओं में मातृभाव रखते थे और उनका सम्मान करते थे।
हिंदी भाषा के प्रति भी उनके मन में यही भाव था। वे हिंदी को 'माँ' के समान मानते थे।
उनसे जुड़ा यह प्रसंग बहुत रोचक और प्रेरणादायी है।
स्वामी विवेकानंद एक बार विदेश गए। वहाँ उनके अनेक प्रशंसक उनसे मिलने के लिए आये हुए। थे उन लोगों ने स्वामी जी की तरफ हाथ मिलाने के लिए बढ़ाया और अपनी सभ्यता के अनुसार अंग्रेजी में 'हेलो' (Hello) कहा जिसके जवाब में स्वामी जी ने दोनों हाथ जोड़कर कहा- 'नमस्ते'। उन लोगों ने सोचा शायद स्वामी जी को अंग्रेजी नहीं आती है।
तब उनमें से एक ने
हिंदी में पूछा "आप कैसे हैं"?
स्वामी जी ने सहज भाव से उत्तर दिया "आई ऐम फाइन, थैंक
यू" (I am fine, thank you !)
उन लोगों को बहुत आश्चर्य हुआ। उन्होंने स्वामी जी से पूछा-
"जब
हमने आपसे अंग्रेजी में बात की तो आपने हिंदी में उत्तर दिया और जब हमने हिंदी में
पूछा तो आपने अंग्रेजी में जवाब दिया। इसका क्या कारण है" ?
इस पर स्वामी जी ने बहुत ही सुंदर जवाब दिया।
"उन्होंने कहा-"जब आप अपनी माँ का सम्मान कर रहे थे तब मैं अपनी माँ का सम्मान कर रहा था और जब आपने मेरी माँ का सम्मान किया तब मैंने आपकी माँ का सम्मान किया"।
उनका यह उत्तर सुनकर सभी श्रद्धावनत हो गए ।
मित्रों ! हिंदी हमारी मातृभाषा है और हमें इस पर गर्व होना चाहिए। अंग्रेजी अथवा अन्य विदेशी भाषाओं का ज्ञान होना अच्छी बात है परंतु विदेशी भाषा सीख लेने पर अपनी ही भाषा को कमतर आँकना, अनावश्यक दिखावा करना और हिंदी बोलने वालों को नीचा दिखाना सर्वथा अनुचित है और हमें इस प्रवृत्ति से बचना होगा।
मैं व्यक्तिगत रूप से ऐसे कई व्यक्तियों को जानता हूँ जिनका अंग्रेजी भाषा का ज्ञान और सम्प्रेषण कौशल किसी जन्मजात अंग्रेजी बोलने वाले से कम न होगा लेकिन वे सामान्य रूप से हिंदी भाषा का ही प्रयोग करते हैं और उन्हें इस पर गर्व है। और जो अंग्रेजी नहीं जानते उन्हें इसको लेकर कभी भी शर्मिंदा नहीं होना चाहिए।
"हमें अंग्रेजी नहीं आती यह शर्म की बात नहीं है; शर्म की बात तो यह है कि हम अपनी मातृभाषा को छोड़कर किसी अन्य भाषा को बोलने में अपनी शान समझने लगते हैं। "
भाइयों! आइए हम सब उस युग पुरोधा, अलौकिक महापुरुष से प्रेरणा लें और यह सुनिश्चित करें कि जब तक आवश्यक न हो अकारण ही विदेशी भाषा का प्रयोग न करें और अन्य को भी इस हेतु जागरुक और प्रेरित करें। यह भी देश सेवा है।
'आचार्य विनोबा भावे' ने कहा था - "मैं दुनिया की सभी भाषाओं की इज्जत करता हूँ, पर मेरे देश में हिंदी की इज्जत न हो, यह मैं सह नहीं सकता" ।
कृपया राष्ट्रभाषा का प्रयोग करें, हिंदी का प्रयोग करें।
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें
आपके बहुमूल्य सुझाव की प्रतीक्षा में...