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Ghalib Shayri मिर्ज़ा ग़ालिब के 20 बेहतरीन शेर | 20 Best Mirza Ghalib Sher Shayri

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"ग़ालिब तेरे क़लाम में क्योंकर मज़ा न हो, पीता हूँ रोज़ धोकर शीरीं सुखन के पाँव।" ग़ज़लों ghazal की दुनिया की बात करें तो मिर्ज़ा ग़ालिब ghalib के जैसा शायर अब शायद दुबारा नहीं होगा। उनकी शख्शियत, ज़िन्दगी के हर पहलू पर उनका नज़रिया, उनका अंदाजे बयाँ, उनकी कलम और उनका क़लाम उन्हें बेजोड़ बनाता है। यूँ तो ग़ालिब साहब मूलतः फ़ारसी के शायर हैं फिर भी उन्होंने उर्दू में जितना लिखा है, उर्दू अदब के बाक़ी सारे क़लमकारों को मिला देने से भी उसकी बराबरी न हो सकेगी। मिर्ज़ा ग़ालिब की प्रसिद्धि का आलम यह है कि बड़े-बुज़ुर्ग तो छोडिए नए लड़के भी अक्सर बोलते रहते हैं - "हमारी शख्शियत का अंदाज़ा तुम क्या लगाओगे 'गालिब'.. । आप ज़िन्दगी के किसी भी मोड़ पे हों ग़ालिब की शायरी ghalib shayari आपके साथ खड़ी मिलेगी। मोहब्बत, बेवफाई, रुसवाई पर तो उन्होंने खूब लिखा ही है, ज़िन्दगी से लेकर जन्नत तक के बाक़ी मौज़ूआत पर भी उन्होंने भरपूर लिखा है और बहुत ख़ूब लिखा है। आज इस बेहद मशहूर, हर दिल अजीज़ शायर जनाब मिर्ज़ा ग़ालिब का जन्मदिन है। आइए इस मौक़े पर पढ़ते हैं उनके कुछ चुनिन्दा, बेहतरीन शेर ghalib sher जो मुझे

राष्ट्रीय कवि 'दिनकर' की प्रसिद्ध हिंदी कविता - सलिल कण हूँ कि पारावार हूँ मैं

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प्रस्तुत है राष्ट्रीय कवि रामधारी सिंह 'दिनकर की प्रसिद्द हिंदी कविता- सलिल कण हूँ कि पारावार हूँ मैं.. सलिल कण हूँ, कि पारावार हूँ मैं? स्वयं छाया, स्वयं आधार हूँ मैं? बँधा हूँ, स्वप्न हूँ, लघु वृत्त हूँ मैं, नहीं तो व्योम का विस्तार हूँ मैं। बँधी है लेखनी लाचार हूँ मैं! समाना चाहता, जो बीन उर में, विकल उस शून्य की झंकार हूँ मैं। भटकता खोजता हूँ, ज्योति तम में, सुना है ज्योति का आगार हूँ मैं। जिसे निशि खोजती तारे जलाकर, उसी का कर रहा अभिसार हूँ मैं। जनम कर मर चुका सौ बार लेकिन, अगम का पा सका क्या पार हूँ मैं। कली की पंखुडीं पर ओस-कण में, रंगीले स्वप्न का संसार हूँ मैं। मुझे क्या आज ही या कल झरुँ मैं, सुमन हूँ, एक लघु उपहार हूँ मैं। मधुर जीवन हुआ कुछ प्राण! जब से, लगा ढोने व्यथा का भार हूँ मैं। रुदन अनमोल धन कवि का, इसी से ही पिरोता आँसुओं का हार हूँ मैं। मुझे क्या गर्व हो अपनी विभा का, चिता का धूलिकण हूँ, क्षार हूँ मैं। पता मेरा तुझे मिट्टी कहेगी, समा जिसमें चुका सौ बार हूँ मैं। न देखे विश्व, पर मुझको घृणा से, मनुज हूँ, सृष्टि का

देवनागरी लिपि - उत्पत्ति, नामकरण व विशेषताएँ | Devanagari Lipi

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देवनागरी लिपि Devanagari Lipi in Hindi वर्तमान समय में प्रचलित समस्त लिपियों में सर्वाधिक व्यवस्थित, समर्थ एवं वैज्ञानिक लिपि है। हिंदी भाषा की लिपि देवनागरी है। हिंदी के अतिरिक्त अनेक भारतीय भाषाएँ जैसे संस्कृत, मराठी,  मैथिली, कोंकणी एवं कतिपय विदेशी भाषाएँ भी देवनागरी में लिखी जाती हैं। उदाहरणार्थ नेपाली भाषा देवनागरी लिपि में ही लिखी जाती है। यह लिपि भारत की अनेक लिपियों के सन्निकट है। हम इस आलेख के अंतर्गत देवनागरी लिपि Devnagri lipi की उत्पत्ति, इसका नामकरण, विशेषताएँ तथा देवनागरी लिपि की वैज्ञानिकता, गुण-दोष आदिक तथ्यों के विषय में जानेंगे। देवनागरी लिपि की उत्पत्ति संसार की सभी भाषाओं को लिखने के लिए किसी न किसी लिपि का प्रयोग किया जाता है। उसी प्रकार देवनागरी भी एक लिपि है जिसका प्रयोग मूलतः हिंदी भाषा को लिखने के लिए किया जाता है। देवनागरी लिपि की उत्पत्ति मूलतः ब्राह्मी लिपि से हुई है। प्राचीन समय में आर्यों के द्वारा प्रयुक्त की गई ब्राह्मी लिपि, संभवतः दुनिया की सर्वाधिक परिपूर्ण प्राचीन लिपि है। समस्त भारतीय लिपियों का जन्म (उर्दू और सिंधी के अतिरिक्

इस पार प्रिये, मधु है तुम हो - harivansh rai bachchan poems in hindi

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'इस पार उस पार' हरिवंशराय बच्चन जी ( harivansh rai bachchan poems in hindi)  का सुंदर प्रणय गीत है। कवि प्रेयसी से, स्वयं से या कहें हम सब से कहता है- इस पार प्रिये मधु है, तुम हो; उस पार न जाने क्या होगा! और विषद अर्थों में यह जीवन का सूत्र है कि प्रियतम के बिना संसार सारहीन है। प्रेम के बिना सारा जग सारहीन है, निरर्थक है और जहाँ प्रेम है वहीं जीवन की सार्थकता है। आइये पढ़ते हैं बच्चन जी की यह प्रसिद्ध कविता-  harivansh rai bachchan poems in hindi इस पार प्रिये मधु है, तुम हो, उस पार न जाने क्या होगा! यह चाँद उदित होकर नभ में, कुछ ताप मिटाता जीवन का, लहरा-लहरा यह शाखाएँ, कुछ शोक भुला देतीं मन का, कल मुर्झाने वाली कलियाँ, हँसकर कहती हैं मगन रहो, बुलबुल तरु की फुनगी पर से, संदेश सुनाती यौवन का, तुम देकर मदिरा के प्याले, मेरा मन बहला देती हो, उस पार मुझे बहलाने का, उपचार न जाने क्या होगा! इस पार प्रिये मधु है, तुम हो, उस पार न जाने क्या होगा! जग में रस की नदियाँ बहती, रसना दो बूंदें पाती है, जीवन की झिलमिलसी झाँकी, नयनों के आगे आती है, स