हिंदी कविता : पुष्प की अभिलाषा- चाह नहीं मैं सुरबाला के

चाह नहीं मैं सुरबाला के गहनों में गूँथा जाऊँ।
चाह नहीं प्रेमी माला में बिंध प्यारी को ललचाऊँ।।

चाह नहीं सम्राटों के शव पर, हे हरि, डाला जाऊँ।
चाह नहीं देवों के सिर पर चढ़ूँ, भाग्य पर इतराऊँ।।

मुझे तोड़ लेना बनमाली! उस पथ पर देना तुम फेंक।
मातृभूमि पर शीश चढ़ाने जिस पथ जावें वीर अनेक।।

                                               'माखनलाल चतुर्वेदी'

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

चार वेद, छ: शास्त्र, अठारह पुराण | 4 Ved 6 Shastra 18 Puranas

राष्ट्रकवि रामधारी सिंह 'दिनकर' की ओजपूर्ण कविता- कलम आज उनकी जय बोल

हिंदी भाषा में रोजगार के अवसर [करियर] Career in Hindi language