हिंदी, हिन्दू, हिंदुस्तान | Hindi Hindu Hindustan

hindi hindu hindustan
चित्र : साभार google image
हिंदी हिंदुस्तान की सर्वप्रमुख भाषा है, किंतु आपको यह जानकर आश्चर्य हो सकता है कि 'हिंदी' शब्द की उत्पत्ति के लिए भारतीय नहीं अपितु वैदेशिक कारक उत्तरदायी हैं। 

'सिन्धु' शब्द का भारतवर्ष से गहरा सम्बन्ध है। भारत की पहचान में सिन्धु का भी अपना महत्वपूर्ण स्थान रहा है। जब ईरान के लोग भारत आए तो उन्होंने सिन्धु को हिन्दु कहा, क्योंकि फ़ारसी में 'स' वर्ण का उच्चारण 'ह' के रूप में किया जाता है।

इस तरह के उच्चारण के कारण सिन्धु शब्द परिवर्तित होकर हिंदु हो गया और सिन्धु प्रदेश के निवासी हिंदु या हिन्दू हो गए। इस प्रकार हिन्दू का अर्थ हुआ हिन्द का रहने वाला और हिन्दी का मतलब हिन्द का। कालांतर में इनकी भाषा भी हिन्दवी या हिंदी बोली जाने लगी। समय के साथ आर्यावर्त और भारतवर्ष के साथ-साथ हिंदुस्तान शब्द का भी प्रयोग होने लगा। वस्तुतः "हिंदी, हिंदू, हिंदुस्तान" के मूल में यही तथ्य विद्यमान है।

अब आइए हिंदी की उत्पत्ति के विषय में कुछ और विचार करें...

हिंदी भाषा का जन्म कब हुआ इस संबंध में यद्यपि कोई एक तिथि निर्धारित कर पाना मुश्किल है तथापि यह निर्विवाद रूप से सत्य है कि हिंदी भाषा का प्रयोग सातवीं शताब्दी के आसपास ही आरंभ हो गया था।

माना जाता है कि हिंदी का सर्वप्रथम प्रयोग अमीर खुसरो ने किया। उन्होंने गयासुद्दीन तुगलक के बेटे को भाषा (हिंदी) सिखाने के लिए 'ख़ालिकबारी' नामक ग्रंथ की रचना की जिसमें 'हिन्दवी' शब्द 30 बार और 'हिंदी' शब्द 5 बार आया है। चूँकि खुसरो का समय तेरहवीं सदी माना जाता है इसलिए 'हिंदी' शब्द का पहला प्रयोग भी तेरहवीं सदी में हुआ। परंतु 'हिंदी' शब्द का प्रयोग होने से पहले ही उस भाषा का प्रयोग आरंभ हो चुका था जिसमें आधुनिक हिंदी के लक्षण विद्यमान थे।

'सरहपा' या 'सरहपाद' को हिंदी का पहला कवि माना जाता है जिनका समय सातवीं शताब्दी है। कतिपय विद्वान 'पुष्य' या 'पुण्ड' नामक कवि को हिंदी का पहला कवि मानते हैं। इनका भी समय सातवीं शताब्दी का है। अतः निर्विवाद रूपेण हिंदी भाषा का प्रादुर्भाव सातवीं शताब्दी जानना चाहिए।

हिंदी भाषा 7वीं सदी से आरंभ होकर आज 21वीं सदी में उत्तरोत्तर प्रगति को प्राप्त होती हुई विश्व में तीसरी सर्वाधिक बोली जाने वाली भाषा के रूप में प्रतिष्ठित हो चुकी है। दुनिया के सैकड़ों देशों में हिंदी का प्रयोग हो रहा है। आज 'देवनागरी' लिपि को विश्व की सर्वाधिक वैज्ञानिक लिपि के रूप में मान्यता प्राप्त है।

स्वतंत्रता आन्दोलन के समय देश को एकसूत्र में बाँधने और देश के जन-जन कि आवाज़ बनकर गूँजने वाली हिंदी के विकास में भारतेंदु हरिश्चन्द्र, महावीर प्रसाद द्विवेदी, मुंशी प्रेमचंद, महात्मा गाँधी, डॉ० हरिवंशराय बच्चन और अनेक युग पुरोधाओं ने अपना अमूल्य योगदान दिया है।

भारत आज विश्व मंच पर दमदारी के साथ अपनी उपस्थिति दर्ज करवा रहा है। ऐसे में हिंदी की भूमिका अधिक महत्वपूर्ण हो जाती है। यह हमारा पुनीत कर्तव्य है कि हिंदी का यथासंभव अधिकाधिक प्रयोग करें, इसका सम्मान करें और इसे सच्चे अर्थों में 'राष्ट्रभाषा' बनाने में अपना सहयोग प्रदान करें।

अंततः, राष्ट्र के विकास में मातृभाषा के उत्थान के महत्व को रेखांकित करतीं निम्न पंक्तियाँ उल्लेखनीय हैं-

निज भाषा उन्नति अहै, सब उन्नति कौ मूल।
बिन निज भाषा  ज्ञान के, मिटै न हिय को शूल।।
     

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

चार वेद, छ: शास्त्र, अठारह पुराण | 4 Ved 6 Shastra 18 Puranas

राष्ट्रकवि रामधारी सिंह 'दिनकर' की ओजपूर्ण कविता- कलम आज उनकी जय बोल

हिंदी भाषा में रोजगार के अवसर [करियर] Career in Hindi language