ग़ज़ल-उस शाम वो रुखसत का समाँ याद रहेगा
उस शाम वो रुखसत का समाँ याद रहेगा।
वो शहर, वो कूचा, वो मकाँ याद रहेगा।।वो टीस कि उभरी थी इधर याद रहेगा,
वो दर्द कि उट्ठा था उधर याद रहेगा।
हाँ बज़्मे-शबाना में हमाशौक़ जो उस दिन,
हम थे तेरी जानिब निगराँ याद रहेगा।
कुछ 'मीर' के अबियात थे कुछ फ़ैज़ के मिसरे,
इक दर्द का था जिनमें बयाँ, याद रहेगा।
हम भूल सके हैं न तुझे भूल सकेंगे,
तू याद रहेगा हमें, हाँ! याद रहेगा।
'इब्ने इंशा'
मायने-
बज़्मे-शबाना = रात की महफ़िल
हमाशौक़ = शौक़ के साथ
निगराँ = दर्शक
अबियात = शे'र
मिसरे = कविता की पंक्तियाँ
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